hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सड़कों पर

पूर्णिमा वर्मन


सड़कों पर हो रही सभाएँ
राजा को -
धुन रही व्यथाएँ

प्रजा
कष्ट में चुप बैठी थी
शासक की किस्मत ऐंठी थी
पीड़ा जब सिर चढ़कर बोली
राजतंत्र की हुई ठिठोली
अखबारों -
में छपी कथाएँ

दुनिया भर
में आग लग गई
हर हिटलर की वाट लग गई
सहनशीलता थक कर टूटी
प्रजातंत्र की चिटकी बूटी
दुनिया को -
मथ रही हवाएँ

जाने कहाँ
समय ले जाए
बिगड़े कौन, कौन बन जाए
तिकड़म राजनीति की चलती
सड़कों पर बंदूक टहलती
शासक की -
नौकर सेनाएँ


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में पूर्णिमा वर्मन की रचनाएँ